शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

कदम जमा जमा कर

रेत पर चल रहे हैं कदम जमा जमा कर
न जाने कौन सी लहर हो तूफाँ से हाथ मिलाये हुए

किसी को पँख मिले हैं परवाज़ के लिये
किन्हीं क़दमों को सरकने की गर्मी भी न नसीब हुए

कोई चढ़ रहा है कामयाबी की सीढ़ियाँ
कोई दामन में है बिखरे अहसास सम्भाले हुए

कहीं जमीन कम , है कहीं आसमान कम
इसी हेरफेर में जाने कितने हैं धराशाई हुए

हवाएँ हैं , चिराग है , है नमी कम
सूखे में हौसले भी हैं भरमाये हुए

जाने वो कौन सी सहर है या लहर
बीच भँवर में कश्ती को आजमाये हुए