रविवार, 19 अगस्त 2012

चाहिये भी क्या

आदमी को चाहिये भी क्या 
एक चुटकी प्यार ही ना 

है चाहतों का ऐसा असर 
नस नस में घुला खुमार ही ना 

गालों पर खिलता गुलाब 
हथेलियों पे रची रँगे-हिना 

बज रहे हैं तार दिल के 
साज दिल का है सितार ही ना 

कौन धड़कनों में शामिल है 
दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना 

रूह से मिटता नहीं उसका ख्याल 
रगों में खून सा शुमार ही ना 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत-बहुत सुन्दर रचना..
    आदमी को चाहिये भी क्या
    एक चुटकी प्यार ही ना
    आहा....
    :-) :-)

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  2. कौन धड़कनों में शामिल है
    दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना

    आदरेया शारदा जी वाह क्या बात है, इस खास के लिए कुछ ज्यादा ही दाद कुबूल कीजिये

    www.arunsblog.in

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  3. बहुत सुन्दर रचना शारदा जी.

    सादर
    अनु

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  4. Aisa nahee ki zindagee me pyar nahee,lekin jis se ummeed ho us se nahe milta!

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  5. आदमी को चाहिये भी क्या
    एक चुटकी प्यार ही ना
    सही कहा आपने, आपसे सहमत......

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  6. आदमी को चाहिए क्या ,वक्ते -दो -की रोटी ,अमन और चैन ही न !बढ़िया अंदाज़ की गजल .कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    सोमवार, 20 अगस्त 2012
    सर्दी -जुकाम ,फ्ल्यू से बचाव के लिए भी काइरोप्रेक्टिक

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  7. कौन धड़कनों में शामिल है
    दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना

    प्रभावित करने वाला शेर...बधाई
    ...ईद की भी

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  8. कौन धड़कनों में शामिल है
    दिल की बस्ती है गुलज़ार ही ना ...

    बहुत खूब ... आपका लाजवाब जुदा अंदाज़ खूबसूरती बढाता है शेरों की ...

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  9. बहुत अच्छी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं