मंगलवार, 12 मार्च 2013

दिन की अहमियत

रात का मुँह देखा तो जानी दिन की अहमियत 
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई 

लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की 
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई 

रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर 
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई 

पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर 
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई 

ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी 
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई